4 मार्च 2019
22 अप्रैल 2016
साधयति संस्कार भारती भारते नवजीवनम् ।
प्रणवमूलं प्रगतिशीलं, प्रखर- राष्ट्र विवर्धकम् ।
शिवं सत्यं सुन्दरं, अभिनवं संस्करणोदयमम् ।।
साधयति संस्कार भारती…
मधुर मंजुल रागभरितम् , हृदय-तन्त्री मन्त्रितम् ।
वादयति संगीतकम्, वसुधैकभावन- पोषकम् ।।
साधयति संस्कार भारती…
ललित रसमय लाय लास्य लीला, चंड तांडव गमकहेला ।
कलित जीवन नाट्यवेदम्, कांति क्रांति कथा प्रमोदम् ।।
साधयति संस्कार भारती…
चतु: षष्ठिकलान्वितम्, परमेष्ठिना परिवर्तितम् ।
विश्वचक्र भ्रमण रूपम्, शाश्वतं श्रुति सम्मतम् ।।
साधयति संस्कार भारती…
जीवयत्यभिलेखमखिलम्, सप्तवर्ण समीकृतम् ।
प्लावयति रससिन्धुना ,प्रतिहिन्दुमानसनन्दनम् ।।
साधयति संस्कार भारती…
रचयिताः स्व. डॉ. घनश्यामल प्रसाद राव
( संस्कार भारती के पूर्व केंद्रीय उपाध्यक्ष )
संस्कार भारती (संस्कृति कलासाधकों के माध्यम से) भारतवर्ष में नवजीवन का संचार करना चाहती है।
ॐकार का महामंत्र इस नवजीवन का मूल बीजमंत्र है। सत्य, मंगलमय, सुन्दरता (सत्यं शिवं सुन्दरम्) इसके आयाम हैं व इसको उन्नतिशील व तेजोमय राष्ट्र बनाने में अग्रसर हैं।
संस्कार भारती मधुर तथा हृदय को मंत्रमुग्ध कर एक-दूसरे से जोड़नेवाले स्वर्गिक संगीत का स्वर चाहती है। यह स्वर ही समस्त मानव जाति की एकता व एकात्मता का प्रतीक है, वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को पुष्ट करता है।
कलात्मक, रसपूर्ण, नृत्यविलास व भयंकर उग्र ताण्डव का बोध करनेवाला विभिन्न भाव रस तथा आनन्दमयी कथाओं से परिपूर्ण नाट्यवेद समस्त लोकजीवन को तेज व ओज गुणों से (सिद्ध) संस्कारित करता है।
चौसठ कलाओं से समन्वित परम गुरु (ऋषि) द्वारा नूतनकृत, संस्काररूपी चक्र पर गतिमान व वेदांत समर्थित, चिरंतन व्यवस्था का निर्माण यही (संस्कार भारती का) ध्येय है॥
संस्कार भारती पुरातन अभिलेखों का संरक्षण-संवर्धन करते हुए सप्त स्वरों (सा रे ग म प ध नी) की रचना से प्रत्येक भारतवासी को रससागर में डुबोकर आनन्द-विभोर करना चाहती है। इस प्रकार संस्कार भारती अपनी साधना से भारत में नवजीवन का संचार चाहती है।
संस्कार भारती से जुड़ें क्योंकि हम एक ऐसा देश चाहते हैं, जहां लोग अपनी प्रतिभा को बेहतर बनाने के लिए न केवल नाम और प्रसिद्धि के लिए बल्कि मानवता की सेवा करने और भगवान की पूजा करने के लिए स्वतंत्र महसूस करें। संस्कार भारती, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक अनुसांगिक संस्था है।